About Us

- कृपया संस्था के जन हितकारी कार्यों में सहयोग करें |
- प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग के माध्यम से गरीबों, निराश्रितों, असहायों को निःशुल्क चिकित्सा प्रदान करना |
- प्रकृति के संरक्षण हेतु आवश्यक क्रियाकलापों का सञ्चालन करना |
- प्राकृतिक संपदाओं जैसे- औषधियों, जड़ी -बूटियों, जल, मृदा, वृक्ष आदि के संरक्षण हेतु लोगों को जागरूक करना एवं अन्य आवश्यक क्रियाकलापों का संपादन करना|
- ग्राम पंचायत स्तर पर निःशुल्क योग, प्राकृतिक चिकित्सा परामर्श केन्द्रों की स्थापना करना |
- समय-समय पर निःशुल्क नेत्र रक्षा कैम्प, पोलियो निवारण कैम्प आयोजित करना |
- समाज के निराश्रितों, मूक-बधिरों, विकलां
गों, नेत्रहीनों तथा विधवाओं एवं वृद्धों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रम चलाना | - जूनियर स्तर पर विद्यालयों के पाठयक्रम में योग व प्राकृतिक चिकित्सा विषय को सम्मिलित कराने का प्रयास करना |
- ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में शिक्षा संस्थानों एवं निःशुल्क औषधालयों का निर्माण व उनके सञ्चालन की व्यवस्था करना |
- कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध आवश्यक अभियान चलाना
- गौ माता संरक्षण के उपाय करना |
- अमर सेवा संस्थान एक स्वयं सेवी संस्था है जोकि सरकार द्वारा सोसाइटी अधिनियम एक्ट 21, 1860 के अंतर्गत पंजीकृत है |
हम रोगी क्यों होते हैं : रोग किसी एक दिन का परिणाम नहीं है बल्कि यह दीर्घकाल तक हमारी अनियमित दिनचर्या एवं अप्राकृतिक खान-पान का फल है| रोगों का कारण जीवाणु भी हम नहीं मानते क्योंकि जीवाणु तो वातावरण में मौजूद ही हैं, यदि वे एक व्यक्ति को संक्रमित कर सकते हैं तो फिर उसी जैसे दूसरे या तीसरे व्यक्ति को संक्रमण क्यों नहीं होता| दो व्यक्ति जो एक ही उम्र के हैं, समान परिवेश में रहते हैं उनमें से एक व्यक्ति को सर्दी, जुकाम, बुखार, फोड़े-फुंसी अथवा किसी अन्य प्रकार संक्रमण हो जाता है जबकि संक्रमित होने के पहले वे दोनों एक साथ रहे, साथ भोजन किया एवं एक ही कमरे में सोये भी, तो फिर दूसरा व्यक्ति क्यों रोग-ग्रस्त नही हुआ ? कारण स्पष्ट है की पहले व्यक्ति के शरीर में रोग-जीवाणुओं को पनपने के लिए उपयुक्त पृष्ठभूमि मिल गयी जिससे जीवाणुओं ने उस व्यक्ति पर आक्रमण कर दिया | अब प्रश्न यह है की शरीर में वह उपयुक्त पृष्ठभूमि क्या है जो रोग जीवाणुओं को पनपाने के लिए उत्तरदायी है ? यहाँ पर यह जान लेना आवश्यक है कि जीवाणुओं को गंदगी से पोषण मिलता है | जिस व्यक्ति ने अपने अन्दर अनियमित दिनचर्या एवं अप्राकृतिक खान-पान से विजातीय द्रव्यों को एकत्र कर रखा है तो स्वाभाविक है वह विजातीय द्रव्य जीवाणुओं के लिए पोषण का कार्य करेंगे और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को क्षीण करेंगे फलस्वरूप शरीर विभिन्न रोगों से घिर जायेगा | इस सन्दर्भ में प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक लुई कूने ने अपनी पुस्तक “द न्यू साइंस ऑफ़ हीलिंग ” में एक उदाहरण से स्पष्ट किया है कि – ‘ यदि किसी कमरे में सीलन, दूषित हवा आदि है तो निश्चित रूप से उसमें कई तरह के जीवाणु , मच्छर, मक्खी आदि उत्पन्न हो जायेंगे यदि इन जीवाणुओं को विष औषधि के द्वारा नष्ट कर दिया जाये तो कुछ समय के लिए वह नष्ट हो जायेंगे परन्तु चूँकि कमरे में जीवाणुओं के पनपने का जो कारण(गंदगी) था वह नष्ट नही हुआ है अतः कमरे में जीवाणु पुनः उत्पन्न हो जायेंगे, बल्कि इस बार उनका स्वरुप और भीषण होगा क्योंकि जीवाणुओं को मारने के लिए प्रयुक्त विष कि मात्रा वहाँ पर और बढ़ चुकी होगी।